Wednesday, May 18, 2011



भीगा भीगा एक सावन,
उसमे भीगा सा एक आंचल
सुलगते जिस्म को
 ढकने  की नाकाम कोशिश मे ,
 बर्बस लगा हुआ.................

सफेद निर्मल नरम मुलायम ...
धोती सा पट,
बारिश के पानी से तर बतर..
लीपटे  हुए  उसके तन पे ,
और भी स्पष्ट करता हुआ 
अंग भंगीमाओं को ....
ऐसा प्रतीत हो रहा जियुं
अजन्ता की कोई मूरत हो.....

दिव्य सोंदर्य की प्रतिमा के 
उज्ज्वल मुख पे लटों से
छलकता पानी रुपी मोती....
मानो सृन्गार कर रहा 
उसके रुप यौवन का....

गीली पलकें  बोझिल नशीली  जैसे 
महखाने  का कोइ  जाम  हो...
अधरों को चूमता सावन जैसे
उसकी प्यास बुझा रहा हो ....

हर बूँद की तलब है 
उस रूहानी देह पे ठहरने की...
पर वो इतना कोमल की 
सब छूट के नीचे गिर पडी....

बारिश तो थम गई, पर
बूंदे अब भी टपक रही ......
अनुपम दृश्य ;
गर चित्रकार होती तो
Canvas पर उकेर देती..............

रिया 

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