Wednesday, June 8, 2011




















पूरी रफ्तार में
चलती बाईक के
अचानक ब्रेंक लग गये...
कियू ना लगते
लाल बत्ती का
आदेश जो था |

चिल चिल्लाती धूप ....
आंखो पे
धूप छांव चश्मा
और मुंह साफे से
ढक रखा था मैने ,
खुद को तन जलाने वाली
धूप से बचाना जो था |

अचानक कुछ बच्चे
बाईक के आस पास
दौडने लगे,
कोई हाथो में
गुलाब लिये...
कोई पेन तो
कोई खिलौना...

"सर जी" गुलाब ले लो --
मैडम को बहुत पसंद आएंगे
"मैडम जी" पेन ले लो
या ये खिलौना
सिर्फ पांच रुपये ...
उमीद भरी उनकी निगाहे
कभी बाईक के पास आती
कभी पास वाली
कार कि खिडकी पर....

मासूम बचपन
धूप में पिघल रहा था
उबलती जमीन पर
जाने कितनी ख्वाहिशे
टपक कर धुआ हो रही थी...
पर किसको समय है
जो उनकी सुध ले .....

सब व्यस्त हैं,
जल्दी में हैं
जिंदगी की रफ्तार से
रफ्तार मिलाने में-
5....4....3............
मैने जल्दी से
पांच का नोट निकाला
और गुलाब ले लिया ...
2...1....
और हरी बत्ती के
जलने मात्र ही
बाईक हवा से बाते करने लगी |

फिर एक नए प्रश्न के
गुत्थम गुत्थी में
रिया परेशान है--
क्या वो पांच का नोट
उसकी तक़दीर है या
इस देश की कमजोरी ??

रिया

5 comments:

  1. बहुत साफ बात कि कौन सुधि ले एसे बच्चों की । चिन्तन योग्य बात कि वह नोट उनकी दकदीर है या देश की कमजोरी। सब कहां ऐसा सोचते है।

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  2. मासूम बचपन
    धूप में पिघल रहा था
    उबलती जमीन पर
    जाने कितनी ख्वाहिशे
    टपक कर धुआ हो रही थी...
    पर किसको समय है
    जो उनकी सुध ले .....


    waah sunder abhivyakti, bahut seedhi tarike se saaedhe dil me utar di apne apni baat.......bahut umda ........

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  3. क्या बात है.नदी की रवानी सी चंचलता देख चकित हुआ..अत्यंत प्रभावी पोस्ट!
    हमज़बान की नयी पोस्ट मेन इटर बन गया शिवभक्त फुर्सत हो तो पढें

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  4. "वो पांच का नोट
    उसकी तक़दीर है या
    इस देश की कमजोरी ??"

    रिया,एक बहुत ही कटु सच्चाई को सामने रखने के लिए बधाई.वह अपनी विवशता और अपने सपने दोनो ही समाज को सौंप कर देश के मुंह पर तमाचा जड़ता है.उसकी मासूमियत पर कईयों को तरस आता है,मगर इसके निदान के बारे में कहाँ सोच पाते हैं हम.
    बहुत ही गंभीर विषय.

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