Thursday, October 20, 2011

" प्रतीक्षा तेरी "


आँख भर आयी पर
तुम नही आए
भीगी पलकों का भार
अब ना सहा जाये
नयनो की व्याकुलता
कैसे बताएँ
कब से हैं नजरों को
प्रतीक्षा तेरी.....

फूल हैं सजाए
पलकों को बिछाये
राहों पे एक टुक
नज़रें गडाये
आए जो वो
तो हमे होश आए
इस मदहोशी को है
प्रतीक्षा तेरी.......

रातों को कभी ना
हमे नींद आए
वो भी चैन से
कहाँ सो पाए
छुटे लम्हों से
दिल फिर मिल पाए
बिछ्ड़े दिलो को है
प्रतीक्षा तेरी.....

सुबह और शाम की तरह
मौसम बदलने लगे
अरमानो के चिराग
मोम से पिघलने लगे
उम्मीद की लौ भी
डगमगाने लगी
आखिर कब तक
करुं मैं .....
प्रतीक्षा तेरी ????

रिया

7 comments:

  1. jindagi hi prateekshha hai......:)
    chahe wo pyar ko paane ka ho..ya kuchh aur:)

    tumhari rachna ab Riya apne udaan pe hai:)

    ReplyDelete
  2. रिया जी
    बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....

    ReplyDelete
  3. फूल हैं सजाए
    पलकों को बिछाये
    राहों पे एक टुक
    नज़रें गडाये
    आए जो वो
    तो हमे होश आए
    इस मदहोशी को है
    प्रतीक्षा तेरी.......

    बहुत सुंदरता से अपने मन मृदु भावों को व्यक्त किया है आपने रिया जी वाकई एक सुंदर रचना !

    ReplyDelete
  4. आप के कमेंट्स के लिए बहुत बहुत आभारी :)संजय जी , आनन्द जी -- :)))

    ReplyDelete
  5. अशोक अरोरा

    रिया जी
    बहुत ही सुंदर .....दिल को छूती ...बेहतरीन पंक्तियाँ ....

    हरिवंशराय बच्चन-की कुछ पंक्तियाँ..लिख रहा हूँ..
    मधुर प्रतीक्षा ही जब इतनी, प्रिय तुम आते तब क्या होता?

    उत्सुकता की अकुलाहट में, मैंने पलक पाँवड़े डाले,
    अम्बर तो मशहूर कि सब दिन, रहता अपने होश सम्हाले,
    तारों की महफिल ने अपनी आँख बिछा दी किस आशा से,
    मेरे मौन कुटी को आते तुम दिख जाते तब क्या होता?

    ReplyDelete