Thursday, October 27, 2011

ये प्रीत अजब




ये प्रीत अजब ,
ये रीत अजब ,
अजब है ये संसार रे...
कोइ नही जी सकता यहाँ
बिना किसी के प्यार रे ....

प्रीत की बंशी
बजा के श्याम ,
लूटे राधा का चैन रे ....
कान्हा-कान्हा करती राधा
अब तो दिन हो या रैन रे....

विष का प्याला
पी के मीरा ,
बन गई श्याम दिवानी रे...
प्रीत के रंग मे रंग गई उसकी
बचपन और जवानी रे....

हीर और राँझा
प्यार मे डूबे,
कहाँ वो किसी से कम थे रे...
प्यार की राह मे चलते चलते
लाखों उठाए सितम थे रे....

लैला - मजनू
की भी गाथा ,
हर आशिक ने गायी रे....
मर के ही चाहे , उसने तो
अपनी प्रीत निभाई रे......

ये प्रीत अजब ,
ये रीत अजब ,
अजब है ये संसार रे...
कोइ नही जी सकता यहाँ
बिना किसी के प्यार रे ....

रिया

5 comments:

  1. ये प्रीत अजब ,
    ये रीत अजब ,
    अजब है ये संसार रे...
    कोइ नही जी सकता यहाँ
    बिना किसी के प्यार रे .....
    .आप ने सुन्दर लिखा है...सहज..व..सरल शब्दोँ ..मेँ...ये सही कहा आपने की कोई नहीँ जी सकता..बिना प्यार के...पर र्रिया.जी..
    कोई बहुत प्यार करता.है..
    दिल-ओ-जान चाहता है
    पर फिर अपनी मोहब्बत
    के हाथोँ बार..बार
    ठुकराया जाता है.... ऍसा क्युँ...करते हैँ...लोग...यहाँ.........

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  2. ye pata nahi kumar kavya ji:) aisa kiyun hota hai.....?????

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  3. कोइ नही जी सकता यहाँ
    बिना किसी के प्यार रे ....

    firya ji aapne ekdm durust frmaya h. kisi ke pyar or yadon ke baiger jeena bahut duswar hai. kafi achha likha h aapne. shubhkamnye

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  4. वाह जी वाह, बडी मेहनत की इस लेख में,

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