Saturday, November 5, 2011

ये मन


ये मन
घृणा , ईर्षा    
हिंसा , द्वेष 
होते प्रस्फुटित 
हर मन में .....
पर मन का 
चालक तू;
खुद राजा है 
मालक तू...
बिन तेरे 
आदेश के 
इनकी एक ना 
चलने वाली .....
अच्छाई
पवित्रता 
शिष्टता
उत्कृष्टता
के आगे 
इनके सारे 
वार हैं खाली ...
अंतर मन को 
शांत तू कर ले 
सारी खुशियाँ 
सृजन कर ले ||

रिया 


9 comments:

  1. मन को बहुत ही अच्छी तरह से पढ़ा है आपने रिया जी .बहुत ही सुंदर रचना |
    चालक तू;
    खुद राजा है
    मालक तू...
    बिन तेरे
    आदेश के
    इनकी एक ना
    चलने वाली .....
    जिसको इस बात का बहन हो जाए उसकी अधि यात्रा तो हो गयी समझो |
    बहुत खूब बधाई इसने सुंदर भावों के लिए !!

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  2. अंतर मन को
    शांत तू कर ले
    सारी खुशियाँ
    सृजन कर ले ||

    बिलकुल सही बात कही आपने।
    बहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग।

    सादर

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  3. अंतर मन को
    शांत तू कर ले
    सारी खुशियाँ
    सृजन कर ले ||

    ....बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति..

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  4. कल 18/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  5. मन ही सबका कारण भी और निवारण भी!

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  6. मन पे अधिकार कर सब कुछ पाया जा सकता है
    बहुत ही सुन्दर रचना बधाई हो !

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  7. सुन्दर भाव ... काश ऐसा कर पाए इंसान

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  8. अंतर मन को
    शांत तू कर ले
    सारी खुशियाँ
    सृजन कर ले ||

    Bahut Sunder Riya.... Gahari baat kahi

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