Friday, June 22, 2012



 तुझे ढुंढने आ रही 




जाने कियुं ???
आज रात बेहद 
काली, घनी, डरावनी   
खौफनाक सी लग रही ...

चांद तो निकला है 
साथ चलने को ,
पर घटाओं का 
आधिपत्य है उस पर ....

तारे भी टिम - टीमाने
आए पर ,
बादलों का छत्र 
है उन पर .....

अन्धेरे की चादर ओढे 
किसी डगर पे जा रही ,
डरी , सहमी, काँपती सी 
अपने कदम बढा रही 

ढुंढ ले ओ साजन मेरे
मैं तुझे ढुंढने आ रही,
महक तुम्हारे साँसों की 
हर पल मुझे महका रही...

खुश्बू से ही
ढुंढ ले शायद ,
खुश्बू अपनी रूह की 
मैं बिखेरती जा रही ......

ढुंढ ले ओ साजन मेरे
मैं तुझे ढुंढने आ रही ||

रिया

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