Thursday, June 21, 2012


" बेकुसूर "



कल रात चाँद पे 
बड़ा गुस्सा आया ....
रोज़ रात आता है , 
और सारे ख्वाब 
चुरा ले जाता है.....
मैंने भी सोच लिया था 
आने दो मोये को 
ऐसा सबक सिखाउंगी कि
सारी चोरी भूल जाएगा

सिरहाने पे बैठी मैं 
चुपचाप चाँद का 
इंतज़ार करने लगी .....
पर आज 'किस्मत का धनी'
नज़र ही ना आये ....
बादलों से आँख मिचोलि
जो खेल रहा था....

हुह ! 
पर मुझे सताए बिना 
चैन कहाँ उसे ???
आ ही गया आखिर नजर
आज मैं भी कमर कस के 
तैयार बैठी थी ...
धर दबोचा .......
बाँध दिया पल्लू से 
खाट के पावे से ....
हम्म ...अब जा के दिखा 

रात बहुत हो चुकी  थी 
चाँद दुबक के बैठा था 
मै चौकस पहरा दे रही थी 
"आज ना ले जाने दूंगी 
अपने ख़्वाबों को ..."
यही सोचते नींद
की आगोश में चली गयी 
ख्वाबों के संग ......

अरे ये क्या फिर चोरी हो गयी !!!
खिड़की से आती तेज 
रौशनी ने जगा दिया ....
मैंने झट से खाट पे बंधे 
चाँद को देखा , पर ......
वहां तो कोई था ही नहीं 
मेरे गीले पल्लू के सिवा ...
शायद रात भर 
पिघलता रहा था ...
सिसकता रहा था ....
वो बेकुसूर    ||

रिया

2 comments:

  1. मेरे गीले पल्लू के सिवा ...
    शायद रात भर
    पिघलता रहा था ...
    सिसकता रहा था ....
    वो बेकुसूर ||


    Behad umda...
    http://emotional-fools.blogspot.in/

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