Wednesday, August 29, 2012

मिट्टी







इस मिट्टी में जन्मे हैं हम 
इस मिट्टी में मिल जायेंगे 
पुरखों की गाथा है सुन ली 
अपनी गाथा लिख जायेंगे 

इस मिट्टी ने सबको पाला
हम भी वैसे पल जायेंगे 
सुख के दिन चढ़ते हैं जैसे 
दुख शामो में ढल जायेंगे 

इस मिट्टी में वीरों ने 
अपना परचंप लहराया है 
जिसकी खुशबू मात्र से ही 
दुश्मन थर-थर थर्राया है 

मिट्टी के हर कण में गुथी 
कितनी ही कथाएं हैं --
युग बदले पर ये ना बदले 
चिर कालीन  परम्पराएँ हैं 

रिया 

3 comments:

  1. वाह रिया जी... क्या खूब लिखा है.... बिलकुल सही....

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  2. is mitti se saundhi si mehak aa rahi hai..too good :)

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