Tuesday, August 28, 2012

माटी नयी पुरानी




ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

बचपन में  रोटी फीकी लागे
रास आये बस माटी खानी
मैया की नज़रों से बच कर 
कान्हा माटी में करे शैतानी 

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

गर्मी में सूरज यूँ तपता 
धरती माँ का कलेजा फटता 
पानी को तरसे ये माटी 
बरसों यूँ ही साथ निभाती 

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

सावन आता जल बरसाता 
धरती की वो प्यास बुझाता 
धरती तो फिर तृप्त हो जाती 
वर्षा माटी बहा ले जाती 

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

बह बह जो माटी आती 
संग उर्वरक उर्जा लाती
बीजों को ढक लेती दामन में 
फिर हरी भरी फसलें लहरातीं 

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

माटी का एक और रूप है
देव देवियों का स्वरुप है
प्रतिमाओं में जब लग जाती है 
अमृत स्वरूपा बन जाती है

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

जन्म ले इस धरती पे आये 
हम माटी के प्राणी है 
पञ्च तत्व से निर्मित काया 
माटी में मिल जानी है 

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

रिया 

6 comments:

  1. जन्म ले इस धरती पे आये
    हम माटी के प्राणी है
    पञ्च तत्व से निर्मित काया
    माटी में मिल जानी है
    फिर क्यूँ सारे प्राणी मोह में फंसे ?

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  2. वाह ...खूबसूरत शब्द रचना के साथ मन के भाव सहेंजे हुए

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  3. आज 4/09/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!

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