ये माटी नयी पुरानी
कहती नित नयी कहानी
बचपन में रोटी फीकी लागे
रास आये बस माटी खानी
मैया की नज़रों से बच कर
कान्हा माटी में करे शैतानी
ये माटी नयी पुरानी
कहती नित नयी कहानी
गर्मी में सूरज यूँ तपता
धरती माँ का कलेजा फटता
पानी को तरसे ये माटी
बरसों यूँ ही साथ निभाती
ये माटी नयी पुरानी
कहती नित नयी कहानी
सावन आता जल बरसाता
धरती की वो प्यास बुझाता
धरती तो फिर तृप्त हो जाती
वर्षा माटी बहा ले जाती
ये माटी नयी पुरानी
कहती नित नयी कहानी
बह बह जो माटी आती
संग उर्वरक उर्जा लाती
बीजों को ढक लेती दामन में
फिर हरी भरी फसलें लहरातीं
ये माटी नयी पुरानी
कहती नित नयी कहानी
माटी का एक और रूप है
देव देवियों का स्वरुप है
प्रतिमाओं में जब लग जाती है
अमृत स्वरूपा बन जाती है
ये माटी नयी पुरानी
कहती नित नयी कहानी
जन्म ले इस धरती पे आये
हम माटी के प्राणी है
पञ्च तत्व से निर्मित काया
माटी में मिल जानी है
ये माटी नयी पुरानी
कहती नित नयी कहानी
रिया
जन्म ले इस धरती पे आये
ReplyDeleteहम माटी के प्राणी है
पञ्च तत्व से निर्मित काया
माटी में मिल जानी है
फिर क्यूँ सारे प्राणी मोह में फंसे ?
thanks di
Deleteवाह ...खूबसूरत शब्द रचना के साथ मन के भाव सहेंजे हुए
ReplyDeletethanks anju di
Deleteक्या आप भारतीय ब्लॉग्स का संकलक "हमारीवाणी" के सदस्य हैं?
ReplyDeleteहमारीवाणी पर ब्लॉग पंजीकृत करने की विधि
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आज 4/09/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
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