कभी हया की लाली रचती थी हांथों में
कभी जहान का प्यार बसता था आँखों में
देख हांथों की लाली कभी
प्यार पिया का मापा जाता था
अपनी दुल्हन की लाली की रंगत देख
पिया भी मन ही मन इठलाता था
लाली अब भी रचती हैं हांथों में
प्यार अब भी बसता है आँखों में
पर नए ज़माने की हवा लग गयी इनको भी
अब मेहँदी लगा के हाथ पानी से नहीं बचाने पड़ते
पिया को भी कोई टेंशन नहीं रंग तो चड़ना ही हैं
ना दुल्हन के पास टाइम है मेहँदी लगा घंटो
उसकी हिफाजत करने का और ना ही
पिया के पास वक़्त है उसकी सौंधी खुशबू
में अपने प्यार की गहरायी तलाशने का
पर मेहँदी का अस्तित्व तो बरक़रार है और रहेगा
शायद इसलिए तो मेहँदी ने भी अपना अल्टरनेटिव ढूंड लिया
और अब इस जहान में ..............
ना हाथों में मेहँदी असली मिलती है
ना आँखों में प्यार असली !!!!
रिया
सच कहा आपने रियाजी, न अब वो मेँहदी असली मिलती है और न ही सच्चा प्यार नसीब होता है । बधाई ।
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