Sunday, September 23, 2012

मेहँदी



कभी हया की लाली रचती थी हांथों में 
कभी जहान का प्यार बसता था आँखों में 
देख हांथों की लाली कभी 
प्यार पिया का मापा जाता था 
अपनी दुल्हन की लाली की रंगत देख 
पिया भी मन ही मन इठलाता था 
लाली अब भी रचती  हैं हांथों में 
प्यार अब भी बसता है आँखों में 
पर नए ज़माने की हवा लग गयी इनको भी 
अब मेहँदी लगा के हाथ पानी से नहीं बचाने पड़ते 
पिया को भी कोई टेंशन नहीं रंग तो चड़ना ही हैं
ना दुल्हन के पास टाइम है मेहँदी लगा घंटो 
उसकी हिफाजत करने का और ना ही 
पिया के पास वक़्त है उसकी सौंधी खुशबू 
में अपने प्यार की गहरायी तलाशने का
पर मेहँदी का अस्तित्व तो बरक़रार है और रहेगा 
शायद इसलिए तो मेहँदी ने भी अपना अल्टरनेटिव ढूंड लिया 
और अब इस जहान में ..............
ना हाथों में मेहँदी असली मिलती है  
ना आँखों में प्यार असली !!!!
रिया 

1 comment:

  1. सच कहा आपने रियाजी, न अब वो मेँहदी असली मिलती है और न ही सच्चा प्यार नसीब होता है । बधाई ।

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