जब कुछ नहीं था ब्रह्माण्ड में ....
सिर्फ धुएं के बादल थे
और आग के गोले थे
वो मैंने झेले थे ......
तप तप कर
लावे से पक पक कर
कठोर और मजबूत हुई हूँ मैं
जाने कितने प्रकाश वर्षों
से तपती आई हूँ ...
फिर बर्फीली ठण्ड में
ठिठुरती सिकुड़ती आई हूँ मैं
इतनी ऊष्मा है अंतर ह्रदय में
की फूट पडूँ तो तबाह कर दूँ
विनाश और प्रलय मचा दूं
मैं माटी हूँ इस धरती की
मैं साक्षी हूँ जीवन की
उसके सृजन की , उत्पत्ति की
जीवाश्म से ले कर
सम्पूर्ण प्राणी की ...
मै साक्षी हूँ
आदम और हअवा की
मैं साक्षी हूँ पुराणों की ,
गीता की, कुरानों की
युद्ध भूमि में बहे लहू की ,
माता , पत्नी के अश्रुओं की
बहनों की लुटती आबरूओं की..
मै साक्षी हूँ ,गुलामी की जंजीरों की
शोषित बीमारों की ..
गद्दार,बागियों की
बगावत के हुंकार की
मैं माटी हूँ ,आदि काल से
इतिहास मुझमे संरक्षित है
मैं विज्ञान का शोध हूँ
मुझसे ही वर्तमान है
मै भविष्य की गोद हूँ
मैं माटी हूँ ..
मैं खुद में एक कहानी हूँ
तुम मेरी कहानी के पात्र हो
तुम मुझसे जन्मे हो
मुझमे ही सिमटने मात्र हो !!!!
रिया