Wednesday, August 29, 2012

मिट्टी







इस मिट्टी में जन्मे हैं हम 
इस मिट्टी में मिल जायेंगे 
पुरखों की गाथा है सुन ली 
अपनी गाथा लिख जायेंगे 

इस मिट्टी ने सबको पाला
हम भी वैसे पल जायेंगे 
सुख के दिन चढ़ते हैं जैसे 
दुख शामो में ढल जायेंगे 

इस मिट्टी में वीरों ने 
अपना परचंप लहराया है 
जिसकी खुशबू मात्र से ही 
दुश्मन थर-थर थर्राया है 

मिट्टी के हर कण में गुथी 
कितनी ही कथाएं हैं --
युग बदले पर ये ना बदले 
चिर कालीन  परम्पराएँ हैं 

रिया 

मैं माटी हूँ ..





जब कुछ नहीं था ब्रह्माण्ड में ....
सिर्फ धुएं के बादल थे 
और आग के गोले थे 
वो मैंने झेले थे ......
तप तप कर 
लावे से पक पक कर 
कठोर और मजबूत हुई हूँ मैं 
जाने कितने प्रकाश वर्षों 
से तपती आई हूँ ...
फिर बर्फीली ठण्ड में 
ठिठुरती सिकुड़ती आई हूँ मैं 
इतनी ऊष्मा है अंतर ह्रदय में 
की  फूट पडूँ तो तबाह कर दूँ 
विनाश और प्रलय मचा दूं 
मैं माटी हूँ इस धरती की 
मैं साक्षी हूँ जीवन की 
उसके सृजन की , उत्पत्ति की 
जीवाश्म से ले कर 
सम्पूर्ण प्राणी की ...
मै साक्षी हूँ 
आदम और हअवा की 
मैं साक्षी हूँ पुराणों की ,
गीता की, कुरानों की 
युद्ध भूमि में बहे लहू की ,
माता , पत्नी के अश्रुओं की 
बहनों की लुटती आबरूओं की..
मै साक्षी हूँ ,गुलामी की जंजीरों की
शोषित बीमारों की ..
गद्दार,बागियों की 
बगावत के हुंकार की 
मैं माटी हूँ ,आदि काल से 
इतिहास मुझमे संरक्षित है 
मैं विज्ञान का शोध हूँ
मुझसे ही वर्तमान है 
मै भविष्य की गोद हूँ 
मैं माटी हूँ ..
मैं खुद में एक कहानी हूँ 
तुम मेरी कहानी के पात्र  हो 
तुम मुझसे जन्मे हो 
मुझमे ही सिमटने मात्र हो !!!!

रिया 

Tuesday, August 28, 2012

माटी नयी पुरानी




ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

बचपन में  रोटी फीकी लागे
रास आये बस माटी खानी
मैया की नज़रों से बच कर 
कान्हा माटी में करे शैतानी 

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

गर्मी में सूरज यूँ तपता 
धरती माँ का कलेजा फटता 
पानी को तरसे ये माटी 
बरसों यूँ ही साथ निभाती 

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

सावन आता जल बरसाता 
धरती की वो प्यास बुझाता 
धरती तो फिर तृप्त हो जाती 
वर्षा माटी बहा ले जाती 

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

बह बह जो माटी आती 
संग उर्वरक उर्जा लाती
बीजों को ढक लेती दामन में 
फिर हरी भरी फसलें लहरातीं 

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

माटी का एक और रूप है
देव देवियों का स्वरुप है
प्रतिमाओं में जब लग जाती है 
अमृत स्वरूपा बन जाती है

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

जन्म ले इस धरती पे आये 
हम माटी के प्राणी है 
पञ्च तत्व से निर्मित काया 
माटी में मिल जानी है 

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

रिया 

हसरतों का 'मीना बाज़ार'



कभी देखा है-
हसरतों का 'मीना बाज़ार' ?
मैंने गढ़ रखा है 
बड़ा विशाल सा
अधूरी हसरतों का 'मीनाबज़ार' |
यहाँ सब मिलेंगी 

नन्ही हसरतें ....
युवा हसरतें .....
बूढी चरमराती हसरतें ....

वो देखो---
मेरी नन्ही हसरत ,
बड़े बिजली के झूले में
पींगे भर रही है...
और
वो मौत का कुआँ देखा ?
खतरनाक खेल...
जान हथेली पर रखी हुई ,
मेरी युवा हसरत
हिचकोले खा रही है ...
अब
बुढा गयी हैं
हड्डियाँ भी और हसरतें भी
ऊँची पींगे
नहीं भर सकतीं ....
ना ही खतरों का
सामना कर सकती हैं ,
पर
हसरतें तो हैं और रहेंगी...
भले टूटती , बिखरती ,
चरमराती कियूं ना हो ...
आखिरी श्वास तक
सिरहाने पड़ी रहती है
कोई अधूरी हसरत !!!

रिया 

Tuesday, August 21, 2012

अधूरी हसरत




बहुत छोटी थी वो 
हसरतें थी बड़ी शायद 
मांगती थी चांदनी 
पिताजी बहला देते थे खिलोनो से .....
फिर क्या ...
चांदनी में निहारती थी खिलोनो को 

संभलने लगी जब
समझने लगी जब
जी चाहा सारा जग घूम ले
अम्मा ने चूल्हा चौका दिखा दिया ....
हुई वो जवान
पींगे भरने लगे थे अरमान
हसरतों ने दामन में
एक और सितारा टांक दिया
मांग बैठी वो राजकुमार
तो ब्याह करा दिया ....
छोड़ आई अपनों को
अनजानों को अपना लिया
अपनी हसरतो की चुनर ला
पिया के आगे पसार दिया
अब तक अध टंके सितारों वाली चुनर
पसरी है ....
अब तो सितारों की चमक भी नहीं रही
सिर्फ चुभन रह गयी ....
अधूरी हसरतों की चुभन....
रिया ..

Friday, August 3, 2012

रक्षा बंधन



साल भर से रहता इंतज़ार 
जिस दिन का बहनों को 
भाईयों पे लुटाने को प्यार 
ऐसा सुख देता है ये 
रक्षा बंधन का त्यौहार

सुबह सवेरा सज धज के 
आरती का थाल सजाये 
भाई की राह देखती बहना 
कब आ कर वो डोर बंधाये 
बहना बैठी आस लगाये 
कब भईया पे प्यार लुटाये 

सुबह से वो भूखी बैठी 
कभी थाल निहारे कभी 
वो रस्ता देखे.....
कब आएंगे प्यारे भईया 
खिल उठता मुरझाया चेहरा 
जैसे ही दिखते  उसके  भईया 

बस भैया ना अब देर लगा 
हल्दी कुमकुम चन्दन लगा
जल्दी से अब कलाई बढ़ा
हाथों में बहना का प्यार सजा 
बहना को स्नेहयुक्त गले लगाके 
भैया ने भी किये  कुछ वादे 

प्यारी बहना तू ना डरना 
कोई हो मुश्किल मुझसे कहना 
युग युग से है यही हुआ 
हर बहना की है  दुआ 
गवाह बना है सम्पूर्ण संसार
सदा सलामत रहे ये प्यार 

रिया 

सावन, मैं और भीगे रास्ते



सावन, मैं और भीगे रास्ते



सीने में 
जलन की ज्वाला
द्वेष की तपिश 
अहम् की अग्नि
स्वाभिमान की ऊष्मा 
लिए निकल पड़ी...
सावन के भीगे 
रास्तों पर .....
पानी की बौछारों से
ज्वाला फूट फूट 
भड़कने लगी
तपिश सूक्ष्म और
अग्नि धुंआ हो के 
छूटने लगी देह से
जैसे विसर्जित हो रही 
कोई शापित काया नेह से
धुल गये सारे 
दुःख विषाद
प्रवाहित जल धारा में  
पवित्र भीगे चोले में 
अब बची बस 
उन्मादित , निरविकार
स्वच्छ ,निर्मल, पारदर्शी 
मेरी अंतर आत्मा...
जो देख सकती थी 
अपने दिव्य तेज से
सांसारिक कोहरा 
जटिल जीवन के बवंडर
और उन से लथपथ 
मेरी काया ....
कुछ पल यूँ ही भीगे 
रहना चाहती हूँ 
महशूस करना चाहती हूँ
इस शीतलता को
डूब जाना चाहती हूँ 
उन्माद की गहराईयों में 
इससे पहले की  
चोला  बदल जाये ----

रिया