माँ की गर्भ से निकल
जैसे ही इस दुनिया में आया
कालचक्र के चक्र व्यूह में
मैंने खुद को पाया ....
कैसे जीना है ?
कैसे सांसें लेनी हैं ?
कैसे भूख मिटानी है ?
ये तो माता के गर्भ से ही
सीख आया ......
अब जीवन के चक्रव्यूह में
कूद पड़ा हूँ मैं ---
हर परिस्थिति के चक्र को
भेदता आ रहा हूँ
लड़ता जा रहा हूँ ......
परन्तु ,
कालचक्र के अंतिम चरण से
मैं परिचित नहीं ,
मैं अभिमन्यु हूँ
इस जीवन चक्र का ....
जीवन के शंखनाद से ही
चक्र भेदता आ रहा
अपनी क्षमता का युद्ध मैं
लड़ता जा रहा ...
दुःख सुख के चक्र ,
पीड़ा तड़प के चक्र ,
विरह मिलन के चक्र
परांगत योद्धा की तरह
मैं ढाता गया
पर अपने मोक्ष का चक्र
नहीं भेदना आया .....
इस व्यूह के रचनाकार
के सम्मुख मैं ,
एक प्रबल योद्धा होते हुए
भी परास्त हूँ क्यूंकि
जीवन के अंतिम चक्र से मैंने
खुद को अनभिज्ञ पाया
और अंततः
धराशाही हो गया ...
रिया
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