Khamoshi...... kya hai..... ik sagar..... khula aasmaan....ya ghar ke kone me pada hua purane akhbaroon ka ek dher.... jinse kisi ko koi wasta nahi....koi raddi wala aa kar chand kaudioon me bhar le jayega..... aur mook ban khamoshi uske ander hi simat jayegi......par kya koi jan payega....ye khamoshi kya chati hai.... to aayiye.....iske ander jhank ke dekhen......
Saturday, November 5, 2011
Thursday, October 27, 2011
ये प्रीत अजब
ये प्रीत अजब ,
ये रीत अजब ,
अजब है ये संसार रे...
कोइ नही जी सकता यहाँ
बिना किसी के प्यार रे ....
प्रीत की बंशी
बजा के श्याम ,
लूटे राधा का चैन रे ....
कान्हा-कान्हा करती राधा
अब तो दिन हो या रैन रे....
विष का प्याला
पी के मीरा ,
बन गई श्याम दिवानी रे...
प्रीत के रंग मे रंग गई उसकी
बचपन और जवानी रे....
हीर और राँझा
प्यार मे डूबे,
कहाँ वो किसी से कम थे रे...
प्यार की राह मे चलते चलते
लाखों उठाए सितम थे रे....
लैला - मजनू
की भी गाथा ,
हर आशिक ने गायी रे....
मर के ही चाहे , उसने तो
अपनी प्रीत निभाई रे......
ये प्रीत अजब ,
ये रीत अजब ,
अजब है ये संसार रे...
कोइ नही जी सकता यहाँ
बिना किसी के प्यार रे ....
रिया
मेरी बात पे यकीन नही
आसमान में उडती हूँ मैं
पावँ तले अब जमीन नही
फिर भी बोले सजना मुझको
मेरी बात पे यकीन नही
रोग लगा इक ऐसा मुझको
उसके सिवा कोइ हकीम नही
फिर भी बोले सजना मुझको
मेरी बात पे यकीन नही
जीवन भर का साथ है मेरा
मैं इन्सुरांस की स्कीम नही
फिर भी बोले सजना मुझको
मेरी बात पे यकीन नही
दिल चुराया था उसी का
जुर्म कोइ संगीन नही
फिर भी बोले सजना मुझको
मेरी बात पे यकीन नही
सुर्ख हवायें , भीगा मौसम
बिन उसके कुछ रंगीन नही
फिर भी बोले सजना मुझको
मेरी बात पे यकीन नही
चाहत से ज्यादा यकीन है तुमपे
खुद पे भी अब यकीन नही
फिर कियुं बोले सजना मुझको
मेरी बात पे यकीन नही...???
रिया
Thursday, October 20, 2011
" प्रतीक्षा तेरी "
आँख भर आयी पर
तुम नही आए
भीगी पलकों का भार
अब ना सहा जाये
नयनो की व्याकुलता
कैसे बताएँ
कब से हैं नजरों को
प्रतीक्षा तेरी.....
फूल हैं सजाए
पलकों को बिछाये
राहों पे एक टुक
नज़रें गडाये
आए जो वो
तो हमे होश आए
इस मदहोशी को है
प्रतीक्षा तेरी.......
रातों को कभी ना
हमे नींद आए
वो भी चैन से
कहाँ सो पाए
छुटे लम्हों से
दिल फिर मिल पाए
बिछ्ड़े दिलो को है
प्रतीक्षा तेरी.....
सुबह और शाम की तरह
मौसम बदलने लगे
अरमानो के चिराग
मोम से पिघलने लगे
उम्मीद की लौ भी
डगमगाने लगी
आखिर कब तक
करुं मैं .....
प्रतीक्षा तेरी ????
रिया
Wednesday, June 8, 2011
पूरी रफ्तार में
चलती बाईक के
अचानक ब्रेंक लग गये...
कियू ना लगते
लाल बत्ती का
आदेश जो था |
चिल चिल्लाती धूप ....
आंखो पे
धूप छांव चश्मा
और मुंह साफे से
ढक रखा था मैने ,
खुद को तन जलाने वाली
धूप से बचाना जो था |
अचानक कुछ बच्चे
बाईक के आस पास
दौडने लगे,
कोई हाथो में
गुलाब लिये...
कोई पेन तो
कोई खिलौना...
"सर जी" गुलाब ले लो --
मैडम को बहुत पसंद आएंगे
"मैडम जी" पेन ले लो
या ये खिलौना
सिर्फ पांच रुपये ...
उमीद भरी उनकी निगाहे
कभी बाईक के पास आती
कभी पास वाली
कार कि खिडकी पर....
मासूम बचपन
धूप में पिघल रहा था
उबलती जमीन पर
जाने कितनी ख्वाहिशे
टपक कर धुआ हो रही थी...
पर किसको समय है
जो उनकी सुध ले .....
सब व्यस्त हैं,
जल्दी में हैं
जिंदगी की रफ्तार से
रफ्तार मिलाने में-
5....4....3............
मैने जल्दी से
पांच का नोट निकाला
और गुलाब ले लिया ...
2...1....
और हरी बत्ती के
जलने मात्र ही
बाईक हवा से बाते करने लगी |
फिर एक नए प्रश्न के
गुत्थम गुत्थी में
रिया परेशान है--
क्या वो पांच का नोट
उसकी तक़दीर है या
इस देश की कमजोरी ??
रिया
Thursday, June 2, 2011
खामोशी को सुना मैने
यकीन तो था हमे कि --
खामोशी भी कुछ कहती है...
पर इन दिनो मैने
खामोशी को
कहते हुये सुना है ....
उसकी दीवानगी को
समझा है,
उसका अपनापन
महशूस किया है |
जिंदगी के उतार चढाव
और हालात के
थपेडो से नीढाल
कुछ वक़्त
अपने लिये निकाल,
दूर सूनी वादीयो में
खालीपन का बोझ ढोये
जब तुम आओगे--
वहां बाहे फैलाये
खामोशी को एक
नये रूप में पाओगे |
खामोश खडे पर्वत
हिम की
ठंडी चादर ओढे,
कह रहे थे मुझसे--
आओ जरा
आराम कर लो
मेरे सीने में सर रख कर
सारे गम भूल कर
मुझे बाहो में भर लो ....
घने उंचे लंबे
चीड और देवदार
यू तो खामोश खडे थे
पर
अपनी छाया का
गालीचा बीछाये ,
पुकार रहे थे मुझको ..
हवा की ठंडी
थपकियो से
सहला रहे थे मुझको..
दूर से चूपचाप बहती
वो नदी की
शीतल धारा
आतुर हो कर
मुझे बुलाती,
थकान दूर करने
को मेरी....
वो बार बार
कदमो को छू कर जाती ...
मैं भी दुनिया भूल
अब उनकी हो चुकी थी
इतना प्यार
अपनापन पा कर
हर गम यहां पर
खो चुकी थी
अब ना कोई गम रहा
ना दिल पे कोई बोझ
मन हलका हो गया
मिल गया संतोष |
वक़्त आ गया अब
जुदाई का
उन हसीन वादियो से
विदायी का
वो अब भी वैसे ही
खामोश हैं,
पर
अब मैं उन्हें
सून सकती हुं ...
वो जुड गये हैं मुझसे !!!!!
रिया
Wednesday, June 1, 2011
नींदे चुराना ठीक नही ....
माना वो सारे ख्वाब बेहद हसीन थे पर
यूं ख्वाब दिखा के नींदे चुराना ठीक नही
थामा था हाथ की चलोगे साया बन कर
यूं हाथ बड़ा कर मुकर जाना ठीक नही
नाशुक्रे दिल की चोट बडी गहरी थी
यूं दिल तोड कर आँसु बहाना ठीक नही
दिल लगा कर ,उससे प्यार जता कर
यूं झुठ - मूठ अपना बनाना ठीक नही
प्यार के बीज बो कर किसी दिल पर
यूं चाहत की प्यास जगाना ठीक नही
प्यार के गुलशन मे खिली गुल सी---
यूं रिया को आजमाना ठीक नही!!!
रिया
Tuesday, May 31, 2011
अभिशाप या बिमारी
रात के ढाई बजे हैं
अचानक मेरी आंख खुल गई
पडोस कि एक बुजुर्गा की चीख
मेरे कानो के परदे भेद गई
जाने कब से चिल्ला रही थी...
गर्मी का पारा पैतालीस डिग्री
को छू रहा था -------
ए. सी. , कूलरो की गढगढाहट में
उसकी चीख कही दब सी गई थी
या फिर शायद ,
अनसुनी कर दी गई थी......
सोच भर से सिहर उठती है आत्मा
के एक दिन हमे भी तो
उसी पडाव से गुजरना है....
आज इतने अपने हैं आस पास
क्या उस पल कोई साथ ना होगा?
क्या वृद्ध अवस्था कोई अभिशाप हैं?
या फिर कोई अछुती बिमारी ?
फिर कियू नही आता कोई पास ?
कियू अकेला छोड देते हैं उस पल सब?
अभी इन सवालो में ही उलझी थी कि-
भोर हो गई.....अंधेरा मिट गया और
रोशनी ने अपना आधिपत्य जमा लिया....
मेरी रात यू ही आंखो में कट गई...
अधूरे जावाबो के साथ..................
रिया
Wednesday, May 18, 2011
ग़ज़ल लिख रही हूँ
ग़ज़ल तुमको मेरे सनम लिख रही
प्यार में हो के बेशरम , लिख रही हूँ
जो दिल अपना तेरे हवाले किया था
उस दिल का हवाला सनम लिख रही हूँ
मेरे तसव्वुर में छाये हुये वो ऐसे
ये सच है या कोई भरम लिख रही हूँ
पिया था जहर मैने सोचा मर जाऊ
मर के निभाऊ वो कसम लिख रही हूँ
जाने कब मिलेगा इस दिल को करार
तुम्हें ऐ सनम हर जनम लिख रही हूँ
ये नादान दिल, मानता ही कहाँ है
तुम्हारी निगाहें करम लिख रही हूँ
रिया
Mobile ना होता तो क्या होता ?
Mobile ना होता
तो भला क्या होता ?
ना Miss Call होता
ना SMS होता ....
पहले STD - PCO मे
लम्बी Line हुआ करती थी....
करनी हो किसी से बात
तो घंटो wait करनी पडती थी.....
अब तो शुक्र है Mobile है ,
नए नए जमाने का
नया नया Style है..
Balance ना हो
तो भी क्या गम है -
Miss Call ही कर दो
वो भी क्या कम है ?
Collage Students तो
Miss Call से ही काम चलाते हैं,
Miss Call की भाषा वो
बडे अच्छे से समझ जाते हैं ...
SMS की तो बात ही खास है
Good Morning से Good Night
Love हो या Hate
हर Occasion का Solution
इसके पास है....
बच्चे बुढे या हो जवान
SMS सबको भाता है..
और कुछ आए ना आए
SMS Forward करना
सबको आता है ..
SIM Airtel हो या Vodafone हो
बस SMS Services का
Rate Low हो..
FM रेडियो भी सुनाता है
ढ़ेरो गाने load करवाता है
अकेले Bore होने से बचाता है
कभी सफर का साथी बन कर
साथ निभाता है..
अब तो Mobile की ऐश है
आज कल तो वो भी
इन्टरनेट और 3G से लैश है....
जिन्दगी के लिए
हवा , पानी और भोजन
जरूरी है----
पर Mobile के बिना तो
जिन्दगी ही अधूरी है ......
रिया
" खाब हो या हो कोइ हकीकत "
जब तक तुम यादों मे थे
ख्वाब बहुत सुहाने थे ....
तुम हकीकत मे क्या आए
सारे ख्वाब ही टूट गए......
वैसे मुझे इल्म था
ऐसे ही कुछ अन्जाम का
पर ठोकर खा कर सम्भलना,
इन्सानी फिदरत है....
पागल ही होगा जो सागर को ..
लोटे मे कैद करना चाहेगा...
जिद्दी लोटा भर भी ले तो ...
लोटे मे उसके तो
केवल जल होगा .....
सागर तो हमेशा .......
लहरों के ही संग होगा ...
हर सपना गर....
हकीकत बन जाये
तो चांद तारों की
दुहाई कौन देगा?
बात बात पे आशिक चांद तारे ...
तोडने की बात करते हैं ....
फिर उन बातों को ,
तवज्जु कौन देगा ?
रिया कह्ती है---
"यादों को गर मीठा रखना हो,
तो यादों मे ही रहने दो....
ज़माने की बुरी हवा ना लगने दो."
रिया
भीगा भीगा एक सावन,
उसमे भीगा सा एक आंचल
सुलगते जिस्म को
ढकने की नाकाम कोशिश मे ,
बर्बस लगा हुआ.................
सफेद निर्मल नरम मुलायम ...
धोती सा पट,
बारिश के पानी से तर बतर..
लीपटे हुए उसके तन पे ,
और भी स्पष्ट करता हुआ
अंग भंगीमाओं को ....
ऐसा प्रतीत हो रहा जियुं
अजन्ता की कोई मूरत हो.....
दिव्य सोंदर्य की प्रतिमा के
उज्ज्वल मुख पे लटों से
छलकता पानी रुपी मोती....
मानो सृन्गार कर रहा
उसके रुप यौवन का....
गीली पलकें बोझिल नशीली जैसे
महखाने का कोइ जाम हो...
अधरों को चूमता सावन जैसे
उसकी प्यास बुझा रहा हो ....
हर बूँद की तलब है
उस रूहानी देह पे ठहरने की...
पर वो इतना कोमल की
सब छूट के नीचे गिर पडी....
बारिश तो थम गई, पर
बूंदे अब भी टपक रही ......
अनुपम दृश्य ;
गर चित्रकार होती तो
Canvas पर उकेर देती..............
रिया
"एक फरेबी चेहरा"
एक फरेबी चेहरे से
मुलाकात हो गई
चलते चलते उस से
थोडी बात हो गई...
भाई वाह.....
अच्छा खासा था वो चेहरा
बिलकुल साफ इमानदार
पर क्या पता था
कही छिपा बैठा है अंदर
एक फरेबी गद्दार.....
चाल ढाल से सामान्य
बोल चाल से नेक......
बाद में पता चला कि...
था वो बस एक दिल फेक
नाक नक्श भी ठीक थे
कद काठी भी ठीक
नजरें तो माशा अल्लाह
बिलकुल सटीक ....
उसकी बातें मीठी ऐसे
शहद फीका हो जैसे
अंदर जहर भरा हुआ
जान पाती मैं कैसे ?
आ गई बातों में उसकी
मैं मूरख अनजान...
कैसे फरेबी मान लू
जब हो गई जान पेहचान
भला कैसे फरेबी मान लू
कैसे बनू अनजान ??
रिया
Wednesday, May 11, 2011
एक आस
एक बार किया था प्यार
फिर ना हुआ कभी...
दिल दिया था एक बार
फिर ना दिया कभी....
वो दर्द , वो जख्म ,
आज भी ताजा हैं ...
जालिम थे वो इतने कि
सिर्फ दर्द से नवाजा है..
वो तो चले गए कब के
पर यादें अभी भी मेरे पास हैं,
हर लम्हा हर घडी...
उनके लौट आने का एहसास है,
ये मोहब्बत की कशिश भी
उनको रोक ना पाई.....
हमारी अधूरी जिन्दगी थी
पूरी भी ना हो पाई.....
अब भी उनकी राहों मे
हर शाम पलकें बिछाऊँ,
"काश ये शाम हो जाये आबाद"
इसी आस मे शायद --
एक और दिन जी जाऊँ ,,,,,,
रिया
Tuesday, May 10, 2011
वो हाथो का मिलना
वो हाथो का मिलना
हमने सम्भाल के रखा है
वो एहसास ...
गुम ना हो जाए कहीं ,
इसलिए भींच के रखी है
मुट्ठी अभी तक...
वो प्यार का स्पर्श,
जहन मे समाया हुआ है
कहीं फिर दुनिया की भीड मे...
गुमनाम ना हो जाये, इसलिए
अपने स्पर्श से ...
ढक रखा है.....
छूटता सा प्रतीत हो रहा...
कहीं छूट ही ना जाये
सच् मे ...इसलिए उसे ...
दिल के करीब रखा है !!!!!
वो हाथो का मिलना
हमने सम्भाल के रखा है !!!!!
रिया
10 May 2011
सपनो मे रोज आते हो तुम
सपनो मे रोज आते हो तुम
एक छोटी सी मुस्कुराहट के साथ,
मैं आंचल मे छुपा लेती हूँ तुम्हे
कह्ती हूँ फिर तुमसे अपने दिल की बात;
तुम हँस कर चूम लेते हो मुझे,
मैं सिमट जाती हूँ फिर तुझमे,
तुम हल्के से जुल्फों मे ..
जब फेर देते हो अपना हाथ,
बहुत प्यारा लगता है ...
मुझे तुम्हारा वो एहसास !
सपनो मे रोज आते हो तुम
एक छोटी सी मुस्कुराहट के साथ!
रिया
Saturday, May 7, 2011
हाय मेंहगायी
लडखडाता बुढापा
दादू का,
सोचा ना था की
डांग भी टूट जायेगी...
कुछ चिल्लड पडे
फटे कोट की जेब में ....
नयी डांग अब
कहां से आयेगी ?
जहां देखो
हाहाकार मचा हैं..
लुटेरो का
बाजार सजा हैं....
अच्छे अच्छो के
हौसले तोड दिये...
इस मेंह्गायी ने ..
सारे बजट फोड दिये ...
दो रुपये में दादू
लस्सी पीते थे ...
पोते गये लेने तो
सीकांज्वी भी ना आयी..
खाली हाथ
लौट पडे ...
पर झोले में
भर लाये.....
हाय मेंहगायी !!
हाय मेंहगायी !!
रिया
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