Khamoshi...... kya hai..... ik sagar..... khula aasmaan....ya ghar ke kone me pada hua purane akhbaroon ka ek dher.... jinse kisi ko koi wasta nahi....koi raddi wala aa kar chand kaudioon me bhar le jayega..... aur mook ban khamoshi uske ander hi simat jayegi......par kya koi jan payega....ye khamoshi kya chati hai.... to aayiye.....iske ander jhank ke dekhen......
मन को बहुत ही अच्छी तरह से पढ़ा है आपने रिया जी .बहुत ही सुंदर रचना |
ReplyDeleteचालक तू;
खुद राजा है
मालक तू...
बिन तेरे
आदेश के
इनकी एक ना
चलने वाली .....
जिसको इस बात का बहन हो जाए उसकी अधि यात्रा तो हो गयी समझो |
बहुत खूब बधाई इसने सुंदर भावों के लिए !!
:) THANKS ANAND JI....
ReplyDeleteअंतर मन को
ReplyDeleteशांत तू कर ले
सारी खुशियाँ
सृजन कर ले ||
बिलकुल सही बात कही आपने।
बहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग।
सादर
अंतर मन को
ReplyDeleteशांत तू कर ले
सारी खुशियाँ
सृजन कर ले ||
....बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति..
कल 18/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
मन ही सबका कारण भी और निवारण भी!
ReplyDeleteमन पे अधिकार कर सब कुछ पाया जा सकता है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना बधाई हो !
सुन्दर भाव ... काश ऐसा कर पाए इंसान
ReplyDeleteअंतर मन को
ReplyDeleteशांत तू कर ले
सारी खुशियाँ
सृजन कर ले ||
Bahut Sunder Riya.... Gahari baat kahi