Wednesday, July 23, 2014


                                             

                                 क्या लौट पायेगा  बाबुराम ?


बाबुराम  एक दिहाड़ी वाला सामान्य आदमी 
रोज की तरह सुबह सवेरे उठकर 
अपनी दिहाड़ी  की तयारी में जुटा हुआ 

 दृश्य एक:


"सुनती हो मुनिया की माँ ... 
आज बड़ा काम मिला है 
सोच रहा हूँ मुनिया की नयी फ्रॉक ले आऊँ 
और वो अपने मुन्ने के जूते भी तो 
चीथड़े हो गए हैं …
लेता आऊंगा "
चूल्हे पे मोटी बाजरे की रोटी सेंकती 
मुनिया की माँ 
चमचमाती आँखों से  
बाबुराम के लिए दूधवाली चाय बनाने लगी। 
रोटी का एक टुकड़ा 
रामा (घर  क द्वार पे बैठा कुत्ता) को दे 
 बाबुराम घर से निकल पड़ा 
बच्चो ने आशा  भरी निगाहों से 
बाबुराम को विदा किया 
"आज बाबा नई फ्रॉक लाएंगे भाई और तेरे जूते भी "

दृश्य दूसरा :


बाबुराम ने आज खूब काम किया 
अच्छी दिहाड़ी बन गयी 
फटाफट खरीददारी  कर ली
मुनिया की फ्रॉक, मुन्ने के जूते 
और एक महकता गजरा 
मुनिया की माँ के  लिए। । 
"अरे आज कुछ गरम समोसे 
और जलेबी भी ले जाता हूँ  
बच्चे खुश हो जायेंगे "
सारा सामान अपनी अधफटी थैली में रख 
ख़ुशी ख़ुशी बाबुराम 
घर की ओर  निकल पड़ा.... 

दृश्य तीसरा :


"माँ बाबा नहीं लौटे  अब तक ?"
जाने कितनी बार मुनिया और मुन्ना पूछ बैठे 
बस आते ही होंगे कह के 
मुनिया की माँ बाल सवारने लगी 
माथे पे बिंदिया और मांग में सिंदूर भर  
चाय  का भगोना लिए 
एक बार दरवाजे तक झांक आई 
रामा भी दरवाजे से गली के चक्कर काट रहा था 
आखिर समय जो हो गया था 
बाबुराम के आने का 
बच्चो की नजर भी रह रह के 
 खिड़की पर जा टिकती 

दृश्य चौथा :


शहर की खचा खच भरी सड़क 
गाड़ियों की रफ़्तार सी भागती भीड़ में 
बढ़ा जा रहा बाबुराम 
मुस्कुराते हुए ,
अचानक देखता है  भीड़ 
लोग ही लोग , हाहाकार 
बिखरा  हुआ सामान
रोटी का डिब्बा खुला हुआ
नए कपडे ,समोसे और जलेबी 
सड़क पे बिखरी हुयी चारो ओर  
और खून से लथपथ एक  देह 
ओह्ह !!
शायद कोई दुर्घटना घटी  है 
सोच आगे बढ़ गया बाबुराम। 


रिया 

                                            



Sunday, September 23, 2012

मेहँदी



कभी हया की लाली रचती थी हांथों में 
कभी जहान का प्यार बसता था आँखों में 
देख हांथों की लाली कभी 
प्यार पिया का मापा जाता था 
अपनी दुल्हन की लाली की रंगत देख 
पिया भी मन ही मन इठलाता था 
लाली अब भी रचती  हैं हांथों में 
प्यार अब भी बसता है आँखों में 
पर नए ज़माने की हवा लग गयी इनको भी 
अब मेहँदी लगा के हाथ पानी से नहीं बचाने पड़ते 
पिया को भी कोई टेंशन नहीं रंग तो चड़ना ही हैं
ना दुल्हन के पास टाइम है मेहँदी लगा घंटो 
उसकी हिफाजत करने का और ना ही 
पिया के पास वक़्त है उसकी सौंधी खुशबू 
में अपने प्यार की गहरायी तलाशने का
पर मेहँदी का अस्तित्व तो बरक़रार है और रहेगा 
शायद इसलिए तो मेहँदी ने भी अपना अल्टरनेटिव ढूंड लिया 
और अब इस जहान में ..............
ना हाथों में मेहँदी असली मिलती है  
ना आँखों में प्यार असली !!!!
रिया 

मैं अभिमन्यु हूँ




माँ की गर्भ से निकल 
जैसे ही इस दुनिया में आया 
कालचक्र के चक्र व्यूह में 
मैंने खुद को पाया ....

कैसे जीना है ?
कैसे सांसें लेनी हैं ?
कैसे भूख मिटानी है ?
ये तो माता के गर्भ से ही 
सीख आया ......

अब जीवन के चक्रव्यूह में 
कूद पड़ा हूँ मैं ---
हर परिस्थिति के चक्र को 
भेदता आ  रहा हूँ 
लड़ता जा रहा हूँ ......

परन्तु , 
कालचक्र के अंतिम चरण से 
मैं परिचित नहीं ,
मैं अभिमन्यु हूँ 
इस जीवन चक्र का ....

जीवन के शंखनाद से ही 
चक्र भेदता आ रहा 
अपनी क्षमता का युद्ध मैं 
लड़ता जा रहा ...

दुःख सुख के चक्र ,
पीड़ा तड़प के चक्र ,
विरह मिलन के चक्र 
परांगत योद्धा की तरह 
मैं ढाता गया 
पर अपने मोक्ष का चक्र 
नहीं भेदना आया .....

इस व्यूह के रचनाकार 
के सम्मुख मैं ,
एक प्रबल योद्धा होते हुए 
भी परास्त हूँ क्यूंकि 
जीवन के अंतिम चक्र से मैंने 
खुद को अनभिज्ञ पाया 
और अंततः 
धराशाही हो गया ...

रिया 

Wednesday, August 29, 2012

मिट्टी







इस मिट्टी में जन्मे हैं हम 
इस मिट्टी में मिल जायेंगे 
पुरखों की गाथा है सुन ली 
अपनी गाथा लिख जायेंगे 

इस मिट्टी ने सबको पाला
हम भी वैसे पल जायेंगे 
सुख के दिन चढ़ते हैं जैसे 
दुख शामो में ढल जायेंगे 

इस मिट्टी में वीरों ने 
अपना परचंप लहराया है 
जिसकी खुशबू मात्र से ही 
दुश्मन थर-थर थर्राया है 

मिट्टी के हर कण में गुथी 
कितनी ही कथाएं हैं --
युग बदले पर ये ना बदले 
चिर कालीन  परम्पराएँ हैं 

रिया 

मैं माटी हूँ ..





जब कुछ नहीं था ब्रह्माण्ड में ....
सिर्फ धुएं के बादल थे 
और आग के गोले थे 
वो मैंने झेले थे ......
तप तप कर 
लावे से पक पक कर 
कठोर और मजबूत हुई हूँ मैं 
जाने कितने प्रकाश वर्षों 
से तपती आई हूँ ...
फिर बर्फीली ठण्ड में 
ठिठुरती सिकुड़ती आई हूँ मैं 
इतनी ऊष्मा है अंतर ह्रदय में 
की  फूट पडूँ तो तबाह कर दूँ 
विनाश और प्रलय मचा दूं 
मैं माटी हूँ इस धरती की 
मैं साक्षी हूँ जीवन की 
उसके सृजन की , उत्पत्ति की 
जीवाश्म से ले कर 
सम्पूर्ण प्राणी की ...
मै साक्षी हूँ 
आदम और हअवा की 
मैं साक्षी हूँ पुराणों की ,
गीता की, कुरानों की 
युद्ध भूमि में बहे लहू की ,
माता , पत्नी के अश्रुओं की 
बहनों की लुटती आबरूओं की..
मै साक्षी हूँ ,गुलामी की जंजीरों की
शोषित बीमारों की ..
गद्दार,बागियों की 
बगावत के हुंकार की 
मैं माटी हूँ ,आदि काल से 
इतिहास मुझमे संरक्षित है 
मैं विज्ञान का शोध हूँ
मुझसे ही वर्तमान है 
मै भविष्य की गोद हूँ 
मैं माटी हूँ ..
मैं खुद में एक कहानी हूँ 
तुम मेरी कहानी के पात्र  हो 
तुम मुझसे जन्मे हो 
मुझमे ही सिमटने मात्र हो !!!!

रिया 

Tuesday, August 28, 2012

माटी नयी पुरानी




ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

बचपन में  रोटी फीकी लागे
रास आये बस माटी खानी
मैया की नज़रों से बच कर 
कान्हा माटी में करे शैतानी 

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

गर्मी में सूरज यूँ तपता 
धरती माँ का कलेजा फटता 
पानी को तरसे ये माटी 
बरसों यूँ ही साथ निभाती 

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

सावन आता जल बरसाता 
धरती की वो प्यास बुझाता 
धरती तो फिर तृप्त हो जाती 
वर्षा माटी बहा ले जाती 

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

बह बह जो माटी आती 
संग उर्वरक उर्जा लाती
बीजों को ढक लेती दामन में 
फिर हरी भरी फसलें लहरातीं 

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

माटी का एक और रूप है
देव देवियों का स्वरुप है
प्रतिमाओं में जब लग जाती है 
अमृत स्वरूपा बन जाती है

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

जन्म ले इस धरती पे आये 
हम माटी के प्राणी है 
पञ्च तत्व से निर्मित काया 
माटी में मिल जानी है 

ये माटी नयी पुरानी 
कहती नित नयी कहानी 

रिया 

हसरतों का 'मीना बाज़ार'



कभी देखा है-
हसरतों का 'मीना बाज़ार' ?
मैंने गढ़ रखा है 
बड़ा विशाल सा
अधूरी हसरतों का 'मीनाबज़ार' |
यहाँ सब मिलेंगी 

नन्ही हसरतें ....
युवा हसरतें .....
बूढी चरमराती हसरतें ....

वो देखो---
मेरी नन्ही हसरत ,
बड़े बिजली के झूले में
पींगे भर रही है...
और
वो मौत का कुआँ देखा ?
खतरनाक खेल...
जान हथेली पर रखी हुई ,
मेरी युवा हसरत
हिचकोले खा रही है ...
अब
बुढा गयी हैं
हड्डियाँ भी और हसरतें भी
ऊँची पींगे
नहीं भर सकतीं ....
ना ही खतरों का
सामना कर सकती हैं ,
पर
हसरतें तो हैं और रहेंगी...
भले टूटती , बिखरती ,
चरमराती कियूं ना हो ...
आखिरी श्वास तक
सिरहाने पड़ी रहती है
कोई अधूरी हसरत !!!

रिया