क्या लौट पायेगा बाबुराम ?
बाबुराम एक दिहाड़ी वाला सामान्य आदमी
रोज की तरह सुबह सवेरे उठकर
अपनी दिहाड़ी की तयारी में जुटा हुआ
दृश्य एक:
"सुनती हो मुनिया की माँ ...
आज बड़ा काम मिला है
सोच रहा हूँ मुनिया की नयी फ्रॉक ले आऊँ
और वो अपने मुन्ने के जूते भी तो
चीथड़े हो गए हैं …
लेता आऊंगा "
चूल्हे पे मोटी बाजरे की रोटी सेंकती
मुनिया की माँ
चमचमाती आँखों से
बाबुराम के लिए दूधवाली चाय बनाने लगी।
रोटी का एक टुकड़ा
रामा (घर क द्वार पे बैठा कुत्ता) को दे
बाबुराम घर से निकल पड़ा
बच्चो ने आशा भरी निगाहों से
बाबुराम को विदा किया
"आज बाबा नई फ्रॉक लाएंगे भाई और तेरे जूते भी "
दृश्य दूसरा :
बाबुराम ने आज खूब काम किया
अच्छी दिहाड़ी बन गयी
फटाफट खरीददारी कर ली
मुनिया की फ्रॉक, मुन्ने के जूते
और एक महकता गजरा
मुनिया की माँ के लिए। ।
"अरे आज कुछ गरम समोसे
और जलेबी भी ले जाता हूँ
बच्चे खुश हो जायेंगे "
सारा सामान अपनी अधफटी थैली में रख
ख़ुशी ख़ुशी बाबुराम
घर की ओर निकल पड़ा....
दृश्य तीसरा :
"माँ बाबा नहीं लौटे अब तक ?"
जाने कितनी बार मुनिया और मुन्ना पूछ बैठे
बस आते ही होंगे कह के
मुनिया की माँ बाल सवारने लगी
माथे पे बिंदिया और मांग में सिंदूर भर
चाय का भगोना लिए
एक बार दरवाजे तक झांक आई
रामा भी दरवाजे से गली के चक्कर काट रहा था
आखिर समय जो हो गया था
बाबुराम के आने का
बच्चो की नजर भी रह रह के
खिड़की पर जा टिकती
दृश्य चौथा :
शहर की खचा खच भरी सड़क
गाड़ियों की रफ़्तार सी भागती भीड़ में
बढ़ा जा रहा बाबुराम
मुस्कुराते हुए ,
अचानक देखता है भीड़
लोग ही लोग , हाहाकार
बिखरा हुआ सामान
रोटी का डिब्बा खुला हुआ
नए कपडे ,समोसे और जलेबी
सड़क पे बिखरी हुयी चारो ओर
और खून से लथपथ एक देह
ओह्ह !!
शायद कोई दुर्घटना घटी है
सोच आगे बढ़ गया बाबुराम।
रिया