Friday, June 22, 2012



आओ प्रियवर 


आओ प्रियवर , तुझे मैं
एक ऐसे जहां ले चलूँ .......

जहाँ हवा में सुकून हो 
फूलों  में  खुशबू,
दिलों में धड़कन,
और फिजा में जुनून हो
कहोगे जो तुम तो ,मैं
ख़ुशी का कारवां ले चलूँ.......

आओ प्रियवर , तुझे मैं
एक ऐसे जहां ले चलूँ .......

जहाँ शीतल जल धारा हो 
हर आलम दिलकश प्यारा हो
पल- पल  , क्षण -क्षण 
बस मेरा और तुम्हारा हो 
तुम ही कहो ना , मैं 
कहाँ ले चलूँ ............... ?

आओ प्रियवर , तुझे मैं
एक ऐसे जहां ले चलूँ .......

जहाँ वादियों का रूप संवारता हो
जीवन नित नव राग भरता हो
दिल यादों की पींगे भरता 
निश्छल प्रेम अर्पण करता हो
कहो तो मैं तुझे 
वहां ले चलूँ...... ?

आओ प्रियवर , तुझे मैं
एक ऐसे जहां ले चलूँ .......

जहां प्रेम,स्नेह प्रणय का पहर हो
स्वपन सुसज्जित घर हो
ना आंधी , ना तूफां
ना जमाने का डर हो
चलो मैं तुझे ,
उसकी पनाह ले चलूँ.....

आओ प्रियवर , तुझे मैं
एक ऐसे जहां ले चलूँ .......

जहां रक्त रंगित सुमन होगा 
प्रेम आलिंगन  मधुबन होगा 
त्याग कर देहों का बंधन 
मोह माया का स्पंदन ...
चलो मेरे संग प्रियवर 
मैं आत्मा ले चलूँ .....

आओ प्रियवर , तुझे मैं
एक ऐसे जहां ले चलूँ .......

रिया 



 तुझे ढुंढने आ रही 




जाने कियुं ???
आज रात बेहद 
काली, घनी, डरावनी   
खौफनाक सी लग रही ...

चांद तो निकला है 
साथ चलने को ,
पर घटाओं का 
आधिपत्य है उस पर ....

तारे भी टिम - टीमाने
आए पर ,
बादलों का छत्र 
है उन पर .....

अन्धेरे की चादर ओढे 
किसी डगर पे जा रही ,
डरी , सहमी, काँपती सी 
अपने कदम बढा रही 

ढुंढ ले ओ साजन मेरे
मैं तुझे ढुंढने आ रही,
महक तुम्हारे साँसों की 
हर पल मुझे महका रही...

खुश्बू से ही
ढुंढ ले शायद ,
खुश्बू अपनी रूह की 
मैं बिखेरती जा रही ......

ढुंढ ले ओ साजन मेरे
मैं तुझे ढुंढने आ रही ||

रिया




आखिर कियुं??


हाद्सों  पे हाद्से होते रहे....
हम अपने अपनो को खोते रहे ...
वो आतंक का बीज बोते रहे ....
देश के चालक सोते रहे....

उठो जागो अपने लिए
अब देश को तुम ही बचाओगे
भरोसा किया अगर फिर उन पे 
तो निःसन्देह फिर धोखा खाओगे

वही हाड़ वही मांस से बना
वही माँ की कोख से जना
आखिर आतंकी भी तो मानव है
फिर कियुं प्रवृति से दानव है?

घर उजाड़ के  लहू बहाना, 
कियुं उसका स्वभाव है?
लगता है स्नेह प्यार दुलार का
जीवन मे उसके अभाव है ...

ये पैगाम है उन हत्यारों को
मत ललकारो वतन के प्यारो को
गर वो मैदान पे आ गए 
नस्तेनाबूत कर देंगे गुनाह्गारो को

आखिर ......
कियुं ये  दहसत,खून खराबा
अमन चैन कियुं नही भाता ?
दुश्मन बन के आते हो ....
भाई बन कियुं नही आता ??

:( रिया 





पता ही ना चला 


पलकों पे आँसु लिए 
हम भी बैठे थे....
पलकों पे आँसु लिए 
वो भी बैठे थे .......
कब दरिया में तुफान आ गया 
पता ही ना चला ;
ड़ूबते चले गए हम भी 
ड़ूबते चले गए वो भी 
कब प्यार का मुकाम आ गया 
पता ही ना चला ||

खामोशी में बैठ कर 
मुस्कुराए हम भी थे ,
खामोशी में बैठ कर 
मुस्कुराए वो भी थे ,
कब चाहतों का 
सिलसिला जुड गया
पता ही ना चला ||

प्रेम के राग में 
गुनगुनाये हम भी थे,
प्रेम के राग में 
गुनगुनाये वो भी थे,
कब एक ही दिशा में
कारवां मुड गया 
पता ही ना चला ||

पतझड में, सुखे पत्तों से 
मुरझाए हम भी थे  ,
पतझड में, सुखे पत्तों से 
मुरझाए वो भी थे ,
कब बसन्त ने 
फूलों से ढक दिया 
पता ही ना चला ||

अपनी ही लगाई आग में 
सुलगे हम भी थे ,
अपनी ही लगाई आग में
सुलगे वो भी थे ,
आखिर , कब.. किसने..
हमें चकमक थमा दिया 
पता ही ना चला ||

रिया



जी चाहता है


गम  भूल खुशियाँ लुटाने को जी चाहता है 
एक बार फिर प्यार जताने को जी चाहता है

शाम ढलते ही सपनो में आ जाते हो 
तेरी इसी अदा पे जां लुटाने को जी चाहता है 

चाहे कियूं ना लाख मशरूफ रहो तुम 
हाल ए दिल तुम्हे बताने को जी चाहता है 

गर कभी रूठ जाओ जो मुझसे तुम
बार बार तुम्हे मनाने को जी चाहता है 

तुझे खोने से डरती हूँ मैं --------
फिर कियूं सताने को जी चाहता है???

रिया 

Thursday, June 21, 2012



अनंत की ओर


कुछ दिनों पहले
एक आहट सुनी थी मैंने 
उसके आने की ---
और चल पड़ी मैं 
उसी ओर....
खामोश सी आहट 
के पीछे 
जाने कितनी 
दूर चली आई मैं ?
आहट तो अभी भी थी ....
पर मैं मिली नहीं 
अभी उनसे ....
अब इतनी दूर चली आई 
तो कैसे मुड़ जाती 
बिना मिले ..
मैं चलती रही 
कभी ख्वाबो  में डूबी 
कभी मुस्कुरायी
कभी झिझकी , सहमी 
कभी लडखडाई....
फिर साहस बटोरे 
खुद को संभाले 
आगे बढ़  आई...
कभी तो 
अँधेरा हटेगा 
कभी तो सपना
हकीकत से मिलेगा  ..
इसी सोच में 
निर्भीक हो कर
मैं चलती रही
अनंत की ओर.......

रिया


" बेकुसूर "



कल रात चाँद पे 
बड़ा गुस्सा आया ....
रोज़ रात आता है , 
और सारे ख्वाब 
चुरा ले जाता है.....
मैंने भी सोच लिया था 
आने दो मोये को 
ऐसा सबक सिखाउंगी कि
सारी चोरी भूल जाएगा

सिरहाने पे बैठी मैं 
चुपचाप चाँद का 
इंतज़ार करने लगी .....
पर आज 'किस्मत का धनी'
नज़र ही ना आये ....
बादलों से आँख मिचोलि
जो खेल रहा था....

हुह ! 
पर मुझे सताए बिना 
चैन कहाँ उसे ???
आ ही गया आखिर नजर
आज मैं भी कमर कस के 
तैयार बैठी थी ...
धर दबोचा .......
बाँध दिया पल्लू से 
खाट के पावे से ....
हम्म ...अब जा के दिखा 

रात बहुत हो चुकी  थी 
चाँद दुबक के बैठा था 
मै चौकस पहरा दे रही थी 
"आज ना ले जाने दूंगी 
अपने ख़्वाबों को ..."
यही सोचते नींद
की आगोश में चली गयी 
ख्वाबों के संग ......

अरे ये क्या फिर चोरी हो गयी !!!
खिड़की से आती तेज 
रौशनी ने जगा दिया ....
मैंने झट से खाट पे बंधे 
चाँद को देखा , पर ......
वहां तो कोई था ही नहीं 
मेरे गीले पल्लू के सिवा ...
शायद रात भर 
पिघलता रहा था ...
सिसकता रहा था ....
वो बेकुसूर    ||

रिया



तो कोई बात है...


दर्द के अश्क तो रोज बरसते हैं 
कभी प्यार के आंसु भिगोये मन 
तो कोई बात है...

बहारों में महकते हैं सारे गुल 
किसी पतझर में महके चमन 
तो कोई बात है.....

सूना हो आँगन , गीला हो आँचल 
ऐसे में थामे जो कोई दामन 
तो कोई बात है.....

दिन सुहाने चढ़ते, सतरंगी शामें ढलतीं
ऐसे किसी आलम में आये साजन
तो कोई बात है......

बाजार से आईने सौ ख़रीदे होंगे 
दो नयन बने जो  तेरा दर्पण 
तो कोई बात है.....

पुतले प्यार के तो बिखरते ही हैं 
महक से उनकी सुवासित हो कण कण 
तो कोई बात है.....

सब पूजते हैं दीये और बाती से 
"रिया" तन मन तू करदे अर्पण 
तो कोई बात है.......

रिया 
वर्षारानी

पायल की रुन- झुन रुन -झुन
कंगना की खन खन खन खन 
झुमके की झूमर झूमर 
बावरे से हो रहे .......
जब बादल आए उमड़ घुमड़ 
उमड़ घुमड़ ... उमड़ घुमड़ 
प्रेम रस बरस रहा 
प्यासा मन तरस रहा 
उष्ण तपिश धरा से 
दुःख विषाद  छूट रहा 
खिले खिले वृक्ष वट
हुए शांत नदी तट 
मस्ती में है अम्बर धरा 
प्रेम रस लूट रहा ...
मादक सा मौसम हुआ 
मदहोश सा मन हुआ
मस्ती सी छा गयी  
जब ठंडी पवन ने छुआ .... 
टिप टिप घटा बरस गयी 
देखो बूँदें टपक रही ....
देखते ही देखते ....
अंगना में मेरे ,वर्षारानी 
मोतियों सी बिखर गयी !!!
रिया