Friday, June 22, 2012




आखिर कियुं??


हाद्सों  पे हाद्से होते रहे....
हम अपने अपनो को खोते रहे ...
वो आतंक का बीज बोते रहे ....
देश के चालक सोते रहे....

उठो जागो अपने लिए
अब देश को तुम ही बचाओगे
भरोसा किया अगर फिर उन पे 
तो निःसन्देह फिर धोखा खाओगे

वही हाड़ वही मांस से बना
वही माँ की कोख से जना
आखिर आतंकी भी तो मानव है
फिर कियुं प्रवृति से दानव है?

घर उजाड़ के  लहू बहाना, 
कियुं उसका स्वभाव है?
लगता है स्नेह प्यार दुलार का
जीवन मे उसके अभाव है ...

ये पैगाम है उन हत्यारों को
मत ललकारो वतन के प्यारो को
गर वो मैदान पे आ गए 
नस्तेनाबूत कर देंगे गुनाह्गारो को

आखिर ......
कियुं ये  दहसत,खून खराबा
अमन चैन कियुं नही भाता ?
दुश्मन बन के आते हो ....
भाई बन कियुं नही आता ??

:( रिया 

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