अनंत की ओर
कुछ दिनों पहले
एक आहट सुनी थी मैंने
उसके आने की ---
और चल पड़ी मैं
उसी ओर....
खामोश सी आहट
के पीछे
जाने कितनी
दूर चली आई मैं ?
आहट तो अभी भी थी ....
पर मैं मिली नहीं
अभी उनसे ....
अब इतनी दूर चली आई
तो कैसे मुड़ जाती
बिना मिले ..
मैं चलती रही
कभी ख्वाबो में डूबी
कभी मुस्कुरायी
कभी झिझकी , सहमी
कभी लडखडाई....
फिर साहस बटोरे
खुद को संभाले
आगे बढ़ आई...
कभी तो
अँधेरा हटेगा
कभी तो सपना
हकीकत से मिलेगा ..
इसी सोच में
निर्भीक हो कर
मैं चलती रही
अनंत की ओर.......
रिया
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