तुझे ढुंढने आ रही
जाने कियुं ???
आज रात बेहद
काली, घनी, डरावनी
खौफनाक सी लग रही ...
चांद तो निकला है
साथ चलने को ,
पर घटाओं का
आधिपत्य है उस पर ....
तारे भी टिम - टीमाने
आए पर ,
बादलों का छत्र
है उन पर .....
अन्धेरे की चादर ओढे
किसी डगर पे जा रही ,
डरी , सहमी, काँपती सी
अपने कदम बढा रही
ढुंढ ले ओ साजन मेरे
मैं तुझे ढुंढने आ रही,
महक तुम्हारे साँसों की
हर पल मुझे महका रही...
खुश्बू से ही
ढुंढ ले शायद ,
खुश्बू अपनी रूह की
मैं बिखेरती जा रही ......
ढुंढ ले ओ साजन मेरे
मैं तुझे ढुंढने आ रही ||
रिया
Very nice....
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